कद्दू परिवार में लौकी का पौधा एक प्रमुख फसल के तौर पर जाना जाता है लोकी ठंडी जल्दी पटने वाली बल दायक एक प्रमुख सब्जी है यह पंजाब हरियाणा दिल्ली maharashtra गुजरात और विहार उत्तर प्रदेश जैसे छोटे बड़े शहरों में इसकी व्यापारिक खेती की जाती है ।
जलवायु ---
लौकी के लिए गर्म तथा ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है इसके लिए 30 से 35 सेंटी क्रिएट तापमान वृद्धि एवं विकास के लिए उपयुक्त माना जाता है अधिक वर्षा और वादल वाले दिन कीटो व रोगों के प्रकोप में सहायक होते हैं।
भूमि एवं इसकी तैयारी
उचित जल निकास वाली जीवांशयुकत हल्की दो मत मिट्टी इसकी फसल के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है नदियों के किनारे वाली भूमि भी इसी फसल उत्पादन के लिए अच्छी रहती है।
जब जब बीज की बुवाई करनी होती है तब खेत को लगभग 2 बार ट्रैक्टर से अच्छी तरह जुताई करवानी चाहिए जिससे खेत में फसल अच्छी होती है और जमीन के अंदर नमी बनी रहती है।
उन्नत किस्मे
लौकी दो प्रकार की होती है।
(1) लंबी लौकी और (2) छोटी लौकी
लंबी लॉकी---:: पूसा समर हिसार सलेक्शन लंबी देसी
पंजाब लॉन्ग पूसा नवीन कल्याणपुर आजद हरित आजाद नूतन प्रतिमा आदि लंबी लौकी हैं।
छोटी लौकी----::: पूसा संदेश पूसा समर पंजाब गोल हाइब्रिड आदि छोटी कद्दू परिवार में लौकी का पौधा एक प्रमुख फसल के तौर पर जाना जाता है लोकी ठंडी जल्दी पटने वाली बल दायक एक प्रमुख सब्जी है यह पंजाब हरियाणा दिल्ली maharashtra गुजरात और विहार उत्तर प्रदेश जैसे छोटे बड़े शहरों में इसकी व्यापारिक खेती की जाती है ।
जलवायु ---
लौकी के लिए गर्म तथा ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है इसके लिए 30 से 35 सेंटी क्रिएट तापमान वृद्धि एवं विकास के लिए उपयुक्त माना जाता है अधिक वर्षा और वादल वाले दिन कीटो व रोगों के प्रकोप में सहायक होते हैं।
भूमि एवं इसकी तैयारी
उचित जल निकास वाली जीवांशयुकत हल्की दोमट मिट्टी इसकी फसल के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है नदियों के किनारे वाली भूमि भी इसी फसल उत्पादन के लिए अच्छी रहती है।
जब हमें बीज की बुवाई करनी होती है तब खेत को लगभग 2 बार ट्रैक्टर से अच्छी तरह जुताई करनी चाहिए जिससे खेत में फसल अच्छी होती है और जमीन के अंदर नमी बनी रहती है।
उन्नत किस्मे
लौकी दो प्रकार की होती है।
(1) लंबी लौकी और (2) छोटी लौकी
लंबी लॉकी---:: पूसा समर हिसार सलेक्शन लंबी देसी
पंजाब लॉन्ग पूसा नवीन कल्याणपुर आजद हरित आजाद नूतन प्रतिमा आदि लंबी लौकी हैं।
छोटी लौकी----::: पूसा संदेश पूसा समर पंजाब गोल हाइब्रिड आदि छोटी लौकी हैं। यह लौकी जल्दी तैयार हो जाती है।
प्रमुख किस्मो की विशेषताएं---
पूसा नवीन--- दोनों मौसम मेंं उगने के लिए उपयुक्त फल 35 सेमी लंबे फल का भार 850 ग्राम उपज प्रति हेक्टेयर 300 कुंतल।
पूसा मेघदूत---: यह लौकी की एक शंकर किस्मम है जो पूसा समर तथा एस एल-2 के मेल से विकसित की गई है इस की पैदावार लगभग 250 कुंटल है।
। पूसा मंजरी- यह गोल फल वाली लौकी की शंकर किस्म है यह किस मूसा समर तथा s l 11 की मेल से तैयार की गई है इस किस्म की प्रति हेक्टेयर उपज 250 कुंटल है
कल्याणपुर लांग--::::: इस किस्म के फल लंबे हरे और मध्यम मोटा के होते है इसकी औसत उपज लगभग 140 से 160 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है।
लौकी बोने का समय
(1) सर्दी के लिए-- ----जनवरी से मार्च तक
( 2) बरसात के लिए-- जून से जुलाई तक
पहले खेत में 40 से 50 सेंटी मीटर चौड़ी नालियां लगभग दो से ढाई मीटर की दूरी पर बना लेनी चाहिए जिसके बाद नालियों के दोनों तरफ बनी मैडो की ढाल पर बीजो की बुवाई आवश्यक दूरी पर करते है।
बीज की मात्रा ---
गर्मी वाली फसल के लिए चार से 6 किलोग्राम और बरसात बाली फसल के लिए तीन से चार किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
खाद तथा उर्वरक---
खेत की मिट्टी की जांच के आधार पर खाद तथा उर्वरक का चुनाव करना चाहिए यदि किसी कारणवश मिस्टी की जांच न हो सके तो उसमें लगभग 200 से 300 कुंतल गोवर से बनी खाद 50 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन 30 से 40 किलोग्राम फॉस्फोरस और 35 से 40 किलोग्राम मोटर्स प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालनी चाहिए।
सिंचाई तथा जल निकास---
बरसात के समय फसल मेंं अधिकतर सिंचाई की आवश्यकता नहींं पड़ती है । यदि किसी कारण से लंबे समय तक बरसात न हो तो आवश्यकतानुसार सिंचाई कर देनी चाहिए।
खेत में जल निकास का उचित प्रबंध हो जिससे बरसात के फालतू पानी को खेत से निकाला जा सके।
निकाई गुडाई ---
लौकी की आरंभिक अवस्था में दो या तीन वार् निकाई और गुडाई करनी चाहिए। यह फसल खेत में चारों तरफ फैली रहती है जिसके कारण खेत में निकाई और गुडाई करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।
प्रमुख किस्मो की विशेषताएं---
पूसा नवीन--- दोनों मौसम मेंं उगने के लिए उपयुक्त फल 35 सेमी लंबे फल का भार 850 ग्राम उपज प्रति हेक्टेयर 300 कुंतल।
पूसा मेघदूत---: यह लौकी की एक शंकर किस्मम है जो पूसा समर तथा एस एल-2 के मेल से विकसित की गई है इस की पैदावार लगभग 250 कुंटल है।
। पूसा मंजरी- यह गोल फल वाली लौकी की शंकर किस्म है यह किस मूसा समर तथा s l 11 की मेल से तैयार की गई है इस किस्म की प्रति हेक्टेयर उपज 250 कुंटल है
कल्याणपुर लांग--::::: इस किस्म के फल लंबे हरे और मध्यम मोटा के होते है इसकी औसत उपज लगभग 140 से 160 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है।
लौकी बोने का समय
(1) सर्दी के लिए-- ----जनवरी से मार्च तक
( 2) बरसात के लिए-- जून से जुलाई तक
पहले खेत में 40 से 50 सेंटी मीटर चौड़ी नालियां लगभग दो से ढाई मीटर की दूरी पर बना लेनी चाहिए जिसके बाद नालियों के दोनों तरफ बनी मैडो की ढाल पर बीजो की बुवाई आवश्यक दूरी पर करते है।
बीज की मात्रा ---
गर्मी वाली फसल के लिए चार से 6 किलोग्राम और बरसात बाली फसल के लिए तीन से चार किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
खाद तथा उर्वरक---
खेत की मिट्टी की जांच के आधार पर खाद तथा उर्वरक का चुनाव करना चाहिए यदि किसी कारणवश मिस्टी की जांच न हो सके तो उसमें लगभग 200 से 300 कुंतल गोवर से बनी खाद 50 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन 30 से 40 किलोग्राम फॉस्फोरस और 35 से 40 किलोग्राम मोटर्स प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालनी चाहिए।
सिंचाई तथा जल निकास---
बरसात के समय फसल मेंं अधिकतर सिंचाई की आवश्यकता नहींं पड़ती है । यदि किसी कारण से लंबे समय तक बरसात न हो तो आवश्यकतानुसार सिंचाई कर देनी चाहिए।
खेत में जल निकास का उचित प्रबंध हो जिससे बरसात के फालतू पानी को खेत से निकाला जा सके।
निकाई गुडाई ---
लौकी की आरंभिक अवस्था में दो या तीन वार् निकाई और गुडाई करनी चाहिए। यह फसल खेत में चारों तरफ फैली रहती है जिसके कारण खेत में निकाई और गुडाई करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।
कीटनाशक दवा का छिड़काव-
रासायनिक विधि से खरपतवारो को नष्ट करने के लिए वैसालीन को एक किलोग्राम सक्रिय अवयव 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर खेत में छिड़काव करते हैं जिससे खेत में होने वाले कीट नष्ट हो जाते हैं।
बीज उत्पादन---
लौकी के शुद्ध बीज उत्पादन वाले खेत से ऐसे पौधों को चुनना या निकालना चाहिए ,जिसमें जाति गुण नहीं दिखाई दे फसल को खरपतवारो से मुक्त रखना चाहिए। फूल आने के समय किसी पौधे में कीट पतंगे दिखाई दे तो उसमें रासायनिक दवाओं का तुरंत छिड़काव करना चाहिए जिससे बीजों को कोई नुकसान न पहुंचे। स्वस्थ फल जब पक जाएं तो उसे पूर्ण रूप से सूखा कर उसे पौधों से अलग करके फल से बीजों को अलग करके धूप में अच्छी तरह से सुखा लेना चाहिए ताकि बीजों में सूखने के बाद 8% से अधिक नमी न रहने पाए । एक हेक्टेयर से लगभग 5 कुंतल बीज प्राप्त हो सकता है।
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