कैसे ले, मशरूम की खेती से अधिक मुनाफा
भारत बर्ष मे मशरूम जैसे गूदेदार कवकों को कई नामों से जाना जाता है। जैसे-कुकुरमुत्ता ,भूमिकवक ,खुंबी शाकाहारी मीट आदि। यह अत्यंत स्वादिष्ट एवं पौष्टिक भोज्य के रूप मे एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
आहार मूल्य
मशरूम पथरी,कैंसर,मधुमेह ,तथा ह्रदय रोगों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए बहुत ही लाभदायक है। इसका आहार मूल्य निम्न प्रकार है जैसे-प्रोटीन,वसा,कार्बोहाइड्रेट,कॅल्शियम ,आयरन,आदि तत्व प्रचुर मात्रा मे पाये जाते है।
मशरूम के लिए आवश्यक जलवायु -
मशरूम के उत्पादन के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। बीज के फैलाव के समय इसे 22 से 25 सेंटीग्रेड तक तापमान की आवश्यकता होती है। तथा फलन के समय तापमान 14 से 18 सेंटीग्रेड के बीच होना चाहिए। तापमान के अलावा श्वेत बटन खुम्ब को अत्यधिक नमी की जरूरत होती है। अतः पूरे उत्पादन में 80 से 90% नमी बनाए रखनी होती है।
मशरूम के लिए उपयुक्त भूमि--
मशरूम उत्पादन के लिए भूमि की आवश्यकता नहीं होती। इसका उत्पादन साधारण कमरे में ग्रीनहाउस गैरेज तथा बंद बरामदे में सफलतापूर्वक किया जा सकता है। व्यवसायिक उत्पादन के लिए विशेष रुप से निर्मित उत्पादन कक्ष अधिक लाभकारी होता है।
मशरूम की किस्में-- भारत की जलवायु के आधार पर मशरूम की मुख्य रूप से निम्न प्रकार की किस्में उगाई जा सकती हैं।
(1) पैडी स्ट्रा मशरूम ---- इसे गर्मियों में धान के पुआल पर 30 से 35 सेंटीग्रेड तापमान पर तथा 80% आर्द्रता मैं अच्छी प्रकार से उगाया जा सकता है।
(2) ढींगरी मशरूम-- विशेष शरद ऋतु मे ( सितंबर- मार्च) 20 से 30 सेंटीग्रेड तापमान पर तथा 80 से 90% आर्द्रता में धान के पुआल पर उगाया जा सकता है।
(3) बटन मशरूम( फील्ड मशरूम)-- इसे शरद ऋतु में धान के पुआल या गेहूं के भूसे की कंपोस्ट पर 80 से 90% आर्द्रता तथा 15 से 25 सेल्सियस तापमान पर पैदा किया जा सकता है ।यह सबसे अधिक लोकप्रिय किस्म है। बाजार में सबसे अधिक इसी किस्म के मशरूम की मांग है।
मशरूम उगाने का समय---
श्वेत बटन खुम्ब को भी एक निश्चित ऋतु में उगाया जाता है। मैदानी भागों में श्वेत खुम्ब उगाने के लिए उचित समय शरद ऋतु में नवंबर से फरवरी तक होता है।
मशरूम उगाने का तरीका
बटन खुम्ब की दो खाद्य जातियां एगेरिकस बाइस्पोरस और एगेरिकस वाइटॉरकिस की अब कृत्रिम खेती की जाती है और वैज्ञानिकों के अनेक प्रयासों के फलस्वरूप इन खुम्बो को कृत्रिम ढंग से तैयार की गई कंपोस्ट पर उगाया जाता है।
मशरूम के लिए कंपोस्ट तैयार करना
मशरूम की अच्छी पैदावार लेने के लिए पोषक तत्वों की संतुलित मात्रा में आवश्यकता पड़ती है मृदा जांच के उपरांत खाद एवं उर्वरकों का उपभोग आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त रहता है मृदा की जांच ना होने की अवस्था में सामान्य रूप से निम्न तत्वों का उपयोग कर सकते हैं।
गेहूं का भूसा 300 किलोग्राम, अमोनिया नाइट्रेट 9 किलोग्राम, यूरिया खाद 3 किलोग्राम, 3 किलोग्राम पोटाश, 3 किलोग्राम फास्फेट ,10 किलोग्राम आटा का चोकर ,30 किलोग्राम जिप्सम आदि तत्वों को मिलाकर कंपोस्ट खाद तैयार की जा सकती है।
गेहूं का भूसा 300 किलोग्राम, अमोनिया नाइट्रेट 9 किलोग्राम, यूरिया खाद 3 किलोग्राम, 3 किलोग्राम पोटाश, 3 किलोग्राम फास्फेट ,10 किलोग्राम आटा का चोकर ,30 किलोग्राम जिप्सम आदि तत्वों को मिलाकर कंपोस्ट खाद तैयार की जा सकती है।
(1) उर्वरक मिश्रण तैयार करना
भूसे को पक्के फर्श पर 24 घंटे तक रुक रुक कर पानी का छिड़काव करके गीला किया जाता है। भूसे को गीला करते समय पैरों से दबाना और भी अच्छा रहता है। ऐसा करने से भूसे में पानी की अवशोषण क्रिया अधिक होती है। साथ ही गीले भूसे की ढेरी बनाने के 12-16 घंटे पहले जिप्सम को छोड़कर अन्य सभी पोषक तत्व जैसे'--- उर्वरक, चोकर आदि को एक साथ मिलाकर गीला कर लेते हैं। और ऊपर से गीली बोरी से ढक देते हैं रात भर इसी प्रकार ढके रहने पर सभी उर्वरक घुलकर चोकर में अवशोषित हो जाते हैं और एक उपयुक्त मिश्रण तैयार हो जाता है।
(2) ढेर बनाना
गीले किए गए भूसे में उर्वरक मिश्रण को मिला दिया जाता है और लकड़ी के तत्वों की सहायता से 5 फुट चौड़ा और 5 फुट ऊंचा ढेर बनाते हैं। ढेर की लंबाई सामग्री की मात्रा पर निर्भर करती है लेकिन ऊंचाई और चौड़ाई ऊपर लिखे माफ से अधिक वह कम नहीं होनी चाहिए। यह ढेर चार-पांच दिनों तक ऐसे ही बना रहता है ढेर के अंदर सूक्ष्म जीवों द्वारा किण्वन की प्रक्रिया के कारण चौथे पांचवें दिन तक तापमान बढ़कर 70 सेंटीग्रेड से भी अधिक हो जाता है जिसे एक तापमापी से नापा जा सकता है।
(3) ढेर की पलटाई
छठवें दिन को पहली पलटाई कर दी जाती है पलट आई देते समय इस बात को विशेष ध्यान रखें की ढेर के प्रत्येक हिस्से को उलट पलट अच्छी तरह से की जाए। दूसरी पलटाई 10 दिन बाद तथा तीसरी पलटाई 13 से 14 दिन बाद करे। इसके बाद उसमें जिप्सम की पूरी मात्रा मिलाकर पुनः नया ढेर बनाते हैं। इसी प्रकार चार-पांच दिन बाद लगातार 1 महीने तक पलटाई करते रहें । 30 दिन बाद कंपोस्ट में अमोनिया 1 मी का परीक्षण किया जाता है।
नमी का स्तर जानने के लिए खाद को मुट्ठी में दबाते हैं। यादव आने पर हाथी ली वह उंगलियां गीली हो जाएं तो खाद में नमी का स्तर उचित माना जाता है ऐसी दशा में खाद में लगभग 70% नमी होती है।
नमी का स्तर जानने के लिए खाद को मुट्ठी में दबाते हैं। यादव आने पर हाथी ली वह उंगलियां गीली हो जाएं तो खाद में नमी का स्तर उचित माना जाता है ऐसी दशा में खाद में लगभग 70% नमी होती है।
उपरोक्त विधि से तैयार की गई खाद में निम्नलिखित गुण होने चाहिए--
(1) खाद का रंग गहरा भूरा हो।
(2) खाद में नमी लगभग 70% होनी चाहिए।
(3) खाद में नाइट्रोजन की मात्रा 2-2.5% हो।
(4) खाद में अमोनिया गंध नहीं होनी चाहिए।
(5) खाद का PH- 7.2--7.8 के बीच हो।
(6) खाद में कोई रोगाणु या नाशक जीव ना हो।
बीजाणु करना--
(1) खाद का रंग गहरा भूरा हो।
(2) खाद में नमी लगभग 70% होनी चाहिए।
(3) खाद में नाइट्रोजन की मात्रा 2-2.5% हो।
(4) खाद में अमोनिया गंध नहीं होनी चाहिए।
(5) खाद का PH- 7.2--7.8 के बीच हो।
(6) खाद में कोई रोगाणु या नाशक जीव ना हो।
बीजाणु करना--
उपयुक्त विधि से तैयार खाद में बीज मिलाया जाता है।खुम्ब का बीज देखने में सफेद व रेशमी कवक जाल युक्त होता है तथा इसमें किसी भी प्रकार की गंध नहीं होती। बीज खरीदते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। यदि बीज को अधिक दूर से खरीद कर लाना हो तो खरीद कर रात्रि के समय यात्रा करनी चाहिए जिससे बीज खराब ना हो।
बीजित खाद को पॉलीथिन के थैलों में भरना व कमरों में रखना
किसान भाई किसी हवादार कमरे में बांस या अन्य प्रकार की मजबूत लकड़ी की सहायता से कमरे की ऊंचाई की दिशा में 2 फुट के अंतराल पर 3 फुट चौड़े सेल्फी आनी चौखट बना लें इस सेल्फ की लंबाई कमरे की लंबाई के अनुसार रखी जाती है। यह कार्य बिजाई करने से पहले कर लेना चाहिए।
बीजित खाद के थैले रखने से 2 दिन पहले कमरे के फर्श तथा दीवारो पर 2% फॉर्मलीन घोल का छिड़काव करें। इसके तुरंत बाद कमरे के दरवाजे तथा खिड़कियां इस प्रकार बंद करें की बाहर की हवा अंदर ना आ सके अगले दिन कमरे को दिन भर के लिए खोल दें।
बीजित खाद के थैले रखने से 2 दिन पहले कमरे के फर्श तथा दीवारो पर 2% फॉर्मलीन घोल का छिड़काव करें। इसके तुरंत बाद कमरे के दरवाजे तथा खिड़कियां इस प्रकार बंद करें की बाहर की हवा अंदर ना आ सके अगले दिन कमरे को दिन भर के लिए खोल दें।
इस प्रकार खुम्ब उत्पादन कक्ष तैयार एवं स्वच्छ कर लिया जाता है। अब खाद में बीज मिलाये और 10-15 Kg बीजित खादो को पॉलीथिन के थैलों में भरकर बंद कमरे में एक दूसरे से सटाकर रख दें। कमरे मे 22-25 सेल्सियस तापमान व 80 -85 % नमी बनाये रखे। नमी कम होने पर कमरे की दीवारों पर पानी का छिड़काव करे तथा फर्श पर पानी डालकर नमी को बढ़ाया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में 2 सप्ताह में खाद में कवक जाल फैल जाता है जो सफेद धागों के रूप में दिखाई देता है।
केसिंग या आवरण
कवक जाल युक्त खाद को एक विशेष प्रकार के केसिंग मिश्रण से ढकना पड़ता है। तभी खुम्ब निकलना आरम्भ होता है। केसिंग परत चढ़ाने का उद्देश्य नवजात खुम्भ कलिकाओं को नमी पोषक तत्व प्रदान करना भी होता है। केसिंग मिश्रण एक प्रकार की मिट्टी है जिसे निम्न अवयवों में मिलाकर तैयार किया जाता है-
(1)- चार भाग दोमट मिट्टी व एक भाग रेत
(2)- 2 साल पुरानी गोबर की खाद व दोमट मिट्टी बराबर ।
(3)- दो साल पुरानी खुम्ब की खाद-2भाग, गोबर की खाद- एक भाग, चिकनी दोमट मिट्टी- एक भाग ।
(1)- चार भाग दोमट मिट्टी व एक भाग रेत
(2)- 2 साल पुरानी गोबर की खाद व दोमट मिट्टी बराबर ।
(3)- दो साल पुरानी खुम्ब की खाद-2भाग, गोबर की खाद- एक भाग, चिकनी दोमट मिट्टी- एक भाग ।
इस मिश्रण को खाद पर चढ़ाने से पहले इसे रोगाणुओं से मुक्त करना होता है रासायनिक उपचार विधि या केसिंग विधि सस्ती व सरल पर होती है इस विधि के अनुसार केसिंग मिश्रण को फॉर्मलीन नामक रसायन के 4% घोल से उपचारित किया जाता है। इस घोल को तैयार करने के लिए 4 लीटर फॉर्मलीन को 40 लीटर पानी में घोला जाता है। इस घोल के केसिंग मिश्रण को गीला किया जाता है तत्पश्चात इस मिश्रण को पॉलिथीन की केसिंग प्रक्रिया शुरू करने के 24 घंटे पूर्व हटाते हैं। अच्छे केसिंग मिश्रण की जल धारण क्षमता अधिक होनी चाहिए।
केसिंग के उपरांत फसल प्रबंधन
केसिंग प्रक्रिया पूर्ण कर लेने के पश्चात फसल की अधिक देखभाल करनी पड़ती है। प्रतिदिन थैलों में नमी का जायजा लेना चाहिए तथा आवश्यकता अनुसार पानी का छिड़काव करते रहें। केसिंग करने के लगभग 1 सप्ताह बाद जब कवक जाल खाद्य से केसिंग परत में फेल जाए तब कमरे का तापमान 22 से 25 सेंटीग्रेड से घटाकर 14 से 18 सेल्सियस पर ले आना चाहिए तथा इस तापमान को पूरे फसल उत्पादन तक बनाए रखना चाहिए। तापमान और नमी के अतिरिक्त मशरूम उत्पादन के लिए खिड़की व दरवाजे द्वारा आसानी से हवा अंदर आ सके और अंदर की हवा जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड अधिक होती है वह बाहर जा सके। सुबह लगभग 1 घंटे के लिए दरवाजे व खिड़कियां खोल देनी चाहिए जिससे ताजी हवा मिल सके परंतु दरवाजे खिड़कियों में महीन जालीदार पर्दे लगाना जरूरी है ताकि मक्खियां आदि से बचा जा सके।
मशरूम की तुड़ाई-
मशरूम कालिकाएं बनने के 2-4 दिन बाद यह मशरूम कालिकाएं विकसित होकर बड़े खुम्बो में परिवर्तित हो जाती हैं। जब खुम्भों को टोपी का आकार 3 से 4 सेमी हो परंतु टोपी बंद हो तब इन्हें परिपक्व समझना चाहिए और मरोड़ कर तोड़ लेना चाहिए। तोरई के बाद शीघ्र इन मशरूम ओं का उपयोग में ले लेना चाहिए क्योंकि यह बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं।
मशरूम की पैदावार (मुनाफा)
अच्छी देखभाल ,अच्छी खाद एवं अच्छे किस्म के बीज का उपयोग करने से लंबी विधि से तैयार की गई प्रति क्विंटल खाद से 12 से 15 किलोग्राम तथा छोटी विधि से तैयार की गई खाद से 20 से 25 किलोग्राम मशरूम 8 से 10 सप्ताह में प्राप्त होती है। इस प्रकार खाद बनाने के लगभग डेढ़ 2 महीने बाद यह मशरूम मिलने लगती है और लगातार 8 से 10 सप्ताह तक इसका उत्पादन मिलता रहता है। जिससे किसानों की पैदावार में वृद्धि जा सकती है।
मशरूम की खेती से अधिक मुनाफा
भारत बर्ष मे मशरूम जैसे गूदेदार कवकों को कई नामों से जाना जाता है। जैसे-कुकुरमुत्ता ,भूमिकवक ,खुंबी शाकाहारी मीट आदि। यह अत्यंत स्वादिष्ट एवं पौष्टिक भोज्य के रूप मे एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
भारत बर्ष मे मशरूम जैसे गूदेदार कवकों को कई नामों से जाना जाता है। जैसे-कुकुरमुत्ता ,भूमिकवक ,खुंबी शाकाहारी मीट आदि। यह अत्यंत स्वादिष्ट एवं पौष्टिक भोज्य के रूप मे एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
आहार मूल्य
मशरूम पथरी,कैंसर,मधुमेह ,तथा ह्रदय रोगों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए बहुत ही लाभदायक है। इसका आहार मूल्य निम्न प्रकार है जैसे-प्रोटीन,वसा,कार्बोहाइड्रेट,कॅल्शियम ,आयरन,आदि तत्व प्रचुर मात्रा मे पाये जाते है।
मशरूम के लिए आवश्यक जलवायु -
मशरूम के उत्पादन के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। बीज के फैलाव के समय इसे 22 से 25 सेंटीग्रेड तक तापमान की आवश्यकता होती है। तथा फलन के समय तापमान 14 से 18 सेंटीग्रेड के बीच होना चाहिए। तापमान के अलावा श्वेत बटन खुम्ब को अत्यधिक नमी की जरूरत होती है। अतः पूरे उत्पादन में 80 से 90% नमी बनाए रखनी होती है।
मशरूम के लिए उपयुक्त भूमि--
मशरूम उत्पादन के लिए भूमि की आवश्यकता नहीं होती। इसका उत्पादन साधारण कमरे में ग्रीनहाउस गैरेज तथा बंद बरामदे में सफलतापूर्वक किया जा सकता है। व्यवसायिक उत्पादन के लिए विशेष रुप से निर्मित उत्पादन कक्ष अधिक लाभकारी होता है।
मशरूम की किस्में-- भारत की जलवायु के आधार पर मशरूम की मुख्य रूप से निम्न प्रकार की किस्में उगाई जा सकती हैं।
(1) पैडी स्ट्रा मशरूम ---- इसे गर्मियों में धान के पुआल पर 30 से 35 सेंटीग्रेड तापमान पर तथा 80% आर्द्रता मैं अच्छी प्रकार से उगाया जा सकता है।
(2) ढींगरी मशरूम-- विशेष शरद ऋतु मे ( सितंबर- मार्च) 20 से 30 सेंटीग्रेड तापमान पर तथा 80 से 90% आर्द्रता में धान के पुआल पर उगाया जा सकता है।
(3) बटन मशरूम( फील्ड मशरूम)-- इसे शरद ऋतु में धान के पुआल या गेहूं के भूसे की कंपोस्ट पर 80 से 90% आर्द्रता तथा 15 से 25 सेल्सियस तापमान पर पैदा किया जा सकता है ।यह सबसे अधिक लोकप्रिय किस्म है। बाजार में सबसे अधिक इसी किस्म के मशरूम की मांग है।
मशरूम उगाने का समय---
श्वेत बटन खुम्ब को भी एक निश्चित ऋतु में उगाया जाता है। मैदानी भागों में श्वेत खुम्ब उगाने के लिए उचित समय शरद ऋतु में नवंबर से फरवरी तक होता है।
बटन खुम्ब की दो खाद्य जातियां एगेरिकस बाइस्पोरस और एगेरिकस वाइटॉरकिस की अब कृत्रिम खेती की जाती है और वैज्ञानिकों के अनेक प्रयासों के फलस्वरूप इन खुम्बो को कृत्रिम ढंग से तैयार की गई कंपोस्ट पर उगाया जाता है।
मशरूम के लिए कंपोस्ट तैयार करना
मशरूम की अच्छी पैदावार लेने के लिए पोषक तत्वों की संतुलित मात्रा में आवश्यकता पड़ती है मृदा जांच के उपरांत खाद एवं उर्वरकों का उपभोग आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त रहता है मृदा की जांच ना होने की अवस्था में सामान्य रूप से निम्न तत्वों का उपयोग कर सकते हैं।
मशरूम की अच्छी पैदावार लेने के लिए पोषक तत्वों की संतुलित मात्रा में आवश्यकता पड़ती है मृदा जांच के उपरांत खाद एवं उर्वरकों का उपभोग आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त रहता है मृदा की जांच ना होने की अवस्था में सामान्य रूप से निम्न तत्वों का उपयोग कर सकते हैं।
गेहूं का भूसा 300 किलोग्राम, अमोनिया नाइट्रेट 9 किलोग्राम, यूरिया खाद 3 किलोग्राम, 3 किलोग्राम पोटाश, 3 किलोग्राम फास्फेट ,10 किलोग्राम आटा का चोकर ,30 किलोग्राम जिप्सम आदि तत्वों को मिलाकर कंपोस्ट खाद तैयार की जा सकती है।
(1) उर्वरक मिश्रण तैयार करना
भूसे को पक्के फर्श पर 24 घंटे तक रुक रुक कर पानी का छिड़काव करके गीला किया जाता है। भूसे को गीला करते समय पैरों से दबाना और अच्छा रहता है। ऐसा करने से भूसे में पानी की अवशोषण क्रिया अधिक होती है। साथ ही गीले भूसे की ढेरी बनाने के 12-16 घंटे पहले जिप्सम को छोड़कर अन्य सभी पोषक तत्व जैसे'--- उर्वरक, चोकर आदि को एक साथ मिलाकर गीला कर लेते हैं। और ऊपर से गीली बोरी से ढक देते हैं रात भर इसी प्रकार ढके रहने पर सभी उर्वरक घुलकर चोकर में अवशोषित हो जाते हैं और एक उपयुक्त मिश्रण तैयार हो जाता है।
भूसे को पक्के फर्श पर 24 घंटे तक रुक रुक कर पानी का छिड़काव करके गीला किया जाता है। भूसे को गीला करते समय पैरों से दबाना और अच्छा रहता है। ऐसा करने से भूसे में पानी की अवशोषण क्रिया अधिक होती है। साथ ही गीले भूसे की ढेरी बनाने के 12-16 घंटे पहले जिप्सम को छोड़कर अन्य सभी पोषक तत्व जैसे'--- उर्वरक, चोकर आदि को एक साथ मिलाकर गीला कर लेते हैं। और ऊपर से गीली बोरी से ढक देते हैं रात भर इसी प्रकार ढके रहने पर सभी उर्वरक घुलकर चोकर में अवशोषित हो जाते हैं और एक उपयुक्त मिश्रण तैयार हो जाता है।
(2) ढेर बनाना
गीले किए गए भूसे में उर्वरक मिश्रण को मिला दिया जाता है और लकड़ी के तत्वों की सहायता से 5 फुट चौड़ा और 5 फुट ऊंचा ढेर बनाते हैं। ढेर की लंबाई सामग्री की मात्रा पर निर्भर करती है लेकिन ऊंचाई और चौड़ाई ऊपर लिखे माफ से अधिक वह कम नहीं होनी चाहिए। यह ढेर चार-पांच दिनों तक ऐसे ही बना रहता है ढेर के अंदर सूक्ष्म जीवों द्वारा किण्वन की प्रक्रिया के कारण चौथे पांचवें दिन तक तापमान बढ़कर 70 सेंटीग्रेड से भी अधिक हो जाता है जिसे एक तापमापी से नापा जा सकता है।
गीले किए गए भूसे में उर्वरक मिश्रण को मिला दिया जाता है और लकड़ी के तत्वों की सहायता से 5 फुट चौड़ा और 5 फुट ऊंचा ढेर बनाते हैं। ढेर की लंबाई सामग्री की मात्रा पर निर्भर करती है लेकिन ऊंचाई और चौड़ाई ऊपर लिखे माफ से अधिक वह कम नहीं होनी चाहिए। यह ढेर चार-पांच दिनों तक ऐसे ही बना रहता है ढेर के अंदर सूक्ष्म जीवों द्वारा किण्वन की प्रक्रिया के कारण चौथे पांचवें दिन तक तापमान बढ़कर 70 सेंटीग्रेड से भी अधिक हो जाता है जिसे एक तापमापी से नापा जा सकता है।
(3) ढेर की पलटाई
छठवें दिन को पहली पलटाई कर दी जाती है पलट आई देते समय इस बात को विशेष ध्यान रखें की ढेर के प्रत्येक हिस्से को उलट पलट अच्छी तरह से की जाए। दूसरी पलटाई 10 दिन बाद तथा तीसरी पलटाई 13 से 14 दिन बाद करे। इसके बाद उसमें जिप्सम की पूरी मात्रा मिलाकर पुनः नया ढेर बनाते हैं। इसी प्रकार चार-पांच दिन बाद लगातार 1 महीने तक पलटाई करते रहें । 30 दिन बाद कंपोस्ट में अमोनिया 1 मी का परीक्षण किया जाता है।
छठवें दिन को पहली पलटाई कर दी जाती है पलट आई देते समय इस बात को विशेष ध्यान रखें की ढेर के प्रत्येक हिस्से को उलट पलट अच्छी तरह से की जाए। दूसरी पलटाई 10 दिन बाद तथा तीसरी पलटाई 13 से 14 दिन बाद करे। इसके बाद उसमें जिप्सम की पूरी मात्रा मिलाकर पुनः नया ढेर बनाते हैं। इसी प्रकार चार-पांच दिन बाद लगातार 1 महीने तक पलटाई करते रहें । 30 दिन बाद कंपोस्ट में अमोनिया 1 मी का परीक्षण किया जाता है।
नमी का स्तर जानने के लिए खाद को मुट्ठी में दबाते हैं। यादव आने पर हाथी ली वह उंगलियां गीली हो जाएं तो खाद में नमी का स्तर उचित माना जाता है ऐसी दशा में खाद में लगभग 70% नमी होती है।
उपरोक्त विधि से तैयार की गई खाद में निम्नलिखित गुण होने चाहिए--
(1) खाद का रंग गहरा भूरा हो।
(2) खाद में नमी लगभग 70% होनी चाहिए।
(3) खाद में नाइट्रोजन की मात्रा 2-2.5% हो।
(4) खाद में अमोनिया गंध नहीं होनी चाहिए।
(5) खाद का PH- 7.2--7.8 के बीच हो।
(6) खाद में कोई रोगाणु या नाशक जीव ना हो।
बीजाणु करना--
उपयुक्त विधि से तैयार खाद में बीज मिलाया जाता है।खुम्ब का बीज देखने में सफेद व रेशमी कवक जाल युक्त होता है तथा इसमें किसी भी प्रकार की गंध नहीं होती। बीज खरीदते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। यदि बीज को अधिक दूर से खरीद कर लाना हो तो खरीद कर रात्रि के समय यात्रा करनी चाहिए जिससे बीज खराब ना हो।
(1) खाद का रंग गहरा भूरा हो।
(2) खाद में नमी लगभग 70% होनी चाहिए।
(3) खाद में नाइट्रोजन की मात्रा 2-2.5% हो।
(4) खाद में अमोनिया गंध नहीं होनी चाहिए।
(5) खाद का PH- 7.2--7.8 के बीच हो।
(6) खाद में कोई रोगाणु या नाशक जीव ना हो।
बीजाणु करना--
उपयुक्त विधि से तैयार खाद में बीज मिलाया जाता है।खुम्ब का बीज देखने में सफेद व रेशमी कवक जाल युक्त होता है तथा इसमें किसी भी प्रकार की गंध नहीं होती। बीज खरीदते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। यदि बीज को अधिक दूर से खरीद कर लाना हो तो खरीद कर रात्रि के समय यात्रा करनी चाहिए जिससे बीज खराब ना हो।
बीजित खाद को पॉलीथिन के थैलों में भरना व कमरों में रखना
किसान भाई किसी हवादार कमरे में बांस या अन्य प्रकार की मजबूत लकड़ी की सहायता से कमरे की ऊंचाई की दिशा में 2 फुट के अंतराल पर 3 फुट चौड़े सेल्फी आनी चौखट बना लें इस सेल्फ की लंबाई कमरे की लंबाई के अनुसार रखी जाती है। यह कार्य बिजाई करने से पहले कर लेना चाहिए।
बीजित खाद के थैले रखने से 2 दिन पहले कमरे के फर्श तथा दीवारो पर 2% फॉर्मलीन घोल का छिड़काव करें। इसके तुरंत बाद कमरे के दरवाजे तथा खिड़कियां इस प्रकार बंद करें की बाहर की हवा अंदर ना आ सके अगले दिन कमरे को दिन भर के लिए खोल दें।
बीजित खाद के थैले रखने से 2 दिन पहले कमरे के फर्श तथा दीवारो पर 2% फॉर्मलीन घोल का छिड़काव करें। इसके तुरंत बाद कमरे के दरवाजे तथा खिड़कियां इस प्रकार बंद करें की बाहर की हवा अंदर ना आ सके अगले दिन कमरे को दिन भर के लिए खोल दें।
इस प्रकार खुम्ब उत्पादन कक्ष तैयार एवं स्वच्छ कर लिया जाता है। अब खाद में बीज मिलाये और 10-15 Kg वीडियो दिखा दो को पॉलीथिन के थैलों में भरकर बंद कमरे में एक दूसरे से सटाकर रख दें। कमरे मे 22-25 सेल्सियस तापमान व 80 -85 % नमी बनाये रखे। नमी कम होने पर कमरे की दीवारों पर पानी का छिड़काव करे तथा फर्श पर पानी डालकर नमी को बढ़ाया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में 2 सप्ताह में खाद में कवक जाल फैल जाता है जो सफेद धागों जैसे दिखाई देता है।
केसिंग या आवरण
कवक जाल युक्त खाद को एक विशेष प्रकार के केसिंग मिश्रण से ढकना पड़ता है। तभी खुम्ब निकलना आरम्भ होता है। केसिंग परत चढ़ाने का उद्देश्य नवजात खुम्भ कलिकाओं को नमी पोषक तत्व प्रदान करना भी होता है केसिंग मिश्रण एक प्रकार की मिट्टी है जिसे निम्न अवयवों में मिलाकर तैयार किया जाता है-
कवक जाल युक्त खाद को एक विशेष प्रकार के केसिंग मिश्रण से ढकना पड़ता है। तभी खुम्ब निकलना आरम्भ होता है। केसिंग परत चढ़ाने का उद्देश्य नवजात खुम्भ कलिकाओं को नमी पोषक तत्व प्रदान करना भी होता है केसिंग मिश्रण एक प्रकार की मिट्टी है जिसे निम्न अवयवों में मिलाकर तैयार किया जाता है-
(1)- चार भाग दोमट मिट्टी व एक भाग रेत
(2)- 2 साल पुरानी गोबर की खाद व दोमट मिट्टी बराबर ।
(3)- दो साल पुरानी खुम्ब की खाद-2भाग, गोबर की खाद- एक भाग, चिकनी दोमट मिट्टी- एक भाग ।
(2)- 2 साल पुरानी गोबर की खाद व दोमट मिट्टी बराबर ।
(3)- दो साल पुरानी खुम्ब की खाद-2भाग, गोबर की खाद- एक भाग, चिकनी दोमट मिट्टी- एक भाग ।
इस मिश्रण को खाद पर चढ़ाने से पहले इसे रोगाणुओं से मुक्त करना होता है रासायनिक उपचार विधि या केसिंग विधि सस्ती व सरल पर होती है इस विधि के अनुसार केसिंग मिश्रण को फॉर्मलीन नामक रसायन के 4% घोल से उपचारित किया जाता है। इस गोल को तैयार करने के लिए 4 लीटर फॉर्मलीन को 40 लीटर पानी में घोला जाता है। इस घोल के केसिंग मिश्रण को गिला किया जाता है तत्पश्चात इस मिश्रण को पॉलिथीन की केसिंग प्रक्रिया शुरू करने के 24 घंटे पूर्व हटाते हैं। अच्छे केसिंग मिश्रण की जल धारण क्षमता अधिक होनी चाहिए।
केसिंग के उपरांत फसल प्रबंधन
केसिंग प्रक्रिया पूर्ण कर लेने के पश्चात फसल की अधिक देखभाल करनी पड़ती है। प्रतिदिन थैलों में नवमी का जायजा लेना चाहिए तथा आवश्यकता अनुसार पानी का छिड़काव करते रहें। केसिंग करने के लगभग 1 सप्ताह बाद जब कवक जाल खाद्य से केसिंग परत में फेल जाए तब कमरे का तापमान 22 से 25 सेंटीग्रेड से घटाकर 14 से 18 सेल्सियस पर ले आना चाहिए तथा इस तापमान को पूरे फसल उत्पादन तक बनाए रखना चाहिए। तापमान और नमी के अतिरिक्त मशरूम उत्पादन के लिए खिड़की व दरवाजे द्वारा आसानी से हवा अंदर आ सके और अंदर की हवा जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड अधिक होती है वह बाहर जा सके। सुबह लगभग 1 घंटे के लिए दरवाजे व खिड़कियां खोल देनी चाहिए जिससे ताजी हवा मिल सके परंतु दरवाजे खिड़कियों में महीन जालीदार पर्दे लगाना जरूरी है ताकि मक्खियां आदिसे बचा जा सके।
मशरूम की तुड़ाई-
मशरूम कालिकाएं बनने के 2-4 दिन बाद यह मशरूम कालिकाएं विकसित होकर बड़े खुम्बो में परिवर्तित हो जाती हैं। जब खुम्भों को टोपी का आकार 3 से 4 सेमी हो परंतु टोपी बंद हो तब इन्हें परिपक्व समझना चाहिए और मरोड़ कर तोड़ लेना चाहिए। तोरई के बाद शीघ्र इन मशरूम ओं का उपयोग में ले लेना चाहिए क्योंकि यह बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं।
मशरूम की पैदावार (मुनाफा)
अच्छी देखभाल अच्छी खाद एवं अच्छे किस्म के बीज का उपयोग करने से लंबी विधि से तैयार की गई प्रति क्विंटल खाद से 12 से 15 किलोग्राम तथा छोटी विधि से तैयार की गई खाद से 20 से 25 किलोग्राम मशरूम 8 से 10 सप्ताह में प्राप्त होती है। इस प्रकार खाद बनाने के लगभग डेढ़ 2 महीने बाद यह मशरूम मिलने लगती है और लगातार 8 से 10 सप्ताह तक इसका उत्पादन मिलता रहता है। जिससे किसानों की पैदावार में वृद्धि जा सकती है।
अच्छी देखभाल अच्छी खाद एवं अच्छे किस्म के बीज का उपयोग करने से लंबी विधि से तैयार की गई प्रति क्विंटल खाद से 12 से 15 किलोग्राम तथा छोटी विधि से तैयार की गई खाद से 20 से 25 किलोग्राम मशरूम 8 से 10 सप्ताह में प्राप्त होती है। इस प्रकार खाद बनाने के लगभग डेढ़ 2 महीने बाद यह मशरूम मिलने लगती है और लगातार 8 से 10 सप्ताह तक इसका उत्पादन मिलता रहता है। जिससे किसानों की पैदावार में वृद्धि जा सकती है।
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